यहां विचार करने की बात यह है कि जब थोड़े से कच्चे दूध में और वह भी थोड़े से समय के संसर्ग में, सांवलेपन मिटा देने की क्षमता है तो नारायण तो रह ही रहे हैं दूध के सागर में। राम उन्हीं के अवतार हैं। दूध के प्रभाव के कारण वे गौरे क्यों नहीं है? वैसे मुझे तो यही बात समझ नहीं आती कि हमारे राम और कृष्ण के सांवले होने के बावजूद हमारे लोग सुंदरता को गोरेपन से जोड़कर क्यों देखते हैं यहां कुछ न कुछ गड़बड़ी तो जरूर है। फिर प्रश्र ये है कि वे गौरे क्यों नहीं हैं? उनका व्यक्तित्व संघर्षशील और श्रमप्रधान है इसलिए रंग सांवला है। उनकी देह में महलों में सुगंधित व सुरक्षित वातावरण में नहीं पनपती बल्कि वह प्रकृति में खुले बरसात की बूंदों का आघात सहती है और यह सब सहसहकर ही अपना निर्माण करती है।मध्यकाल के राजा राम ने अपने सौंदर्य को नए रूप में परिभाषित करके भारतीयों को यही संदेश दिया है कि श्रम को सर माथे पर लगाओ क्योंकि यही वह है जो हमें गढ़ता है। जो कौम श्रम की अवहेलना करेगी, उसका अस्तित्व हमेशा संदिग्ध रहेगा।
Dr. Vijay Pithadia, FIETE, PhD, MBA Director, PhD Guided: 5, Author of 6 Books, Google Scholar Citations - 536, h-index - 8, M: +91 9898422655 UGC/Scopus/Web of Science Publication: 30, Referred/Peer Reviewed Publication: 63, Chapters Published In Books: 12, Full Papers Published in Conference Proceedings: 21, Patent Published: 3, Invited Lectures and Chairmanship etc.: 41, Conference Organized: 4, AICTE faculty ID: 1-24647366683
20121220
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राम का अवतार लेना इस बात को दर्शाता है कि जीवन में संघर्ष जरूरी है क्योंकि संघर्ष ही इंसान को भगवान बना सकता है। जिसकी भौंहों के हल्के से संचालन मात्र से विश्व में प्रलय हो जाता है, उसे ताड़का और रावण जैसों के वध के इतनी माथापच्ची की भला क्या जरूरत है। क्या वे ऐसा करके वे इस धरती पर कर्म ही सबसे पहले है इस सिद्धांत की पुर्नस्थापना करना नहीं चाहते थे। जब बच्चा पैदा होता है। तब अनेक माताएं अपने बच्चों पर दूध का लेप करती है, ताकि बच्चा गोरा हो सके। अनेक लड़कियों और महिलाओं तक को सुबह-सुबह चेहरे पर कच्चा दूध मलते हुए देखा जा सकता है ताकि चेहरे का सांवलापन मिट सके।
यहां विचार करने की बात यह है कि जब थोड़े से कच्चे दूध में और वह भी थोड़े से समय के संसर्ग में, सांवलेपन मिटा देने की क्षमता है तो नारायण तो रह ही रहे हैं दूध के सागर में। राम उन्हीं के अवतार हैं। दूध के प्रभाव के कारण वे गौरे क्यों नहीं है? वैसे मुझे तो यही बात समझ नहीं आती कि हमारे राम और कृष्ण के सांवले होने के बावजूद हमारे लोग सुंदरता को गोरेपन से जोड़कर क्यों देखते हैं यहां कुछ न कुछ गड़बड़ी तो जरूर है। फिर प्रश्र ये है कि वे गौरे क्यों नहीं हैं? उनका व्यक्तित्व संघर्षशील और श्रमप्रधान है इसलिए रंग सांवला है। उनकी देह में महलों में सुगंधित व सुरक्षित वातावरण में नहीं पनपती बल्कि वह प्रकृति में खुले बरसात की बूंदों का आघात सहती है और यह सब सहसहकर ही अपना निर्माण करती है।मध्यकाल के राजा राम ने अपने सौंदर्य को नए रूप में परिभाषित करके भारतीयों को यही संदेश दिया है कि श्रम को सर माथे पर लगाओ क्योंकि यही वह है जो हमें गढ़ता है। जो कौम श्रम की अवहेलना करेगी, उसका अस्तित्व हमेशा संदिग्ध रहेगा।
यहां विचार करने की बात यह है कि जब थोड़े से कच्चे दूध में और वह भी थोड़े से समय के संसर्ग में, सांवलेपन मिटा देने की क्षमता है तो नारायण तो रह ही रहे हैं दूध के सागर में। राम उन्हीं के अवतार हैं। दूध के प्रभाव के कारण वे गौरे क्यों नहीं है? वैसे मुझे तो यही बात समझ नहीं आती कि हमारे राम और कृष्ण के सांवले होने के बावजूद हमारे लोग सुंदरता को गोरेपन से जोड़कर क्यों देखते हैं यहां कुछ न कुछ गड़बड़ी तो जरूर है। फिर प्रश्र ये है कि वे गौरे क्यों नहीं हैं? उनका व्यक्तित्व संघर्षशील और श्रमप्रधान है इसलिए रंग सांवला है। उनकी देह में महलों में सुगंधित व सुरक्षित वातावरण में नहीं पनपती बल्कि वह प्रकृति में खुले बरसात की बूंदों का आघात सहती है और यह सब सहसहकर ही अपना निर्माण करती है।मध्यकाल के राजा राम ने अपने सौंदर्य को नए रूप में परिभाषित करके भारतीयों को यही संदेश दिया है कि श्रम को सर माथे पर लगाओ क्योंकि यही वह है जो हमें गढ़ता है। जो कौम श्रम की अवहेलना करेगी, उसका अस्तित्व हमेशा संदिग्ध रहेगा।