बाल्टी यदि झुकती है,
> तो भरकर बाहर आती है...
> जीवन का भी यही गणित है,
> जो झुकता है वह प्राप्त करता है...
>
> जीवन में किसीका भला करोगे तो लाभ होगा...
> क्योंकि भला का उल्टा लाभ
> होता है।
>
> और जीवन में किसी पर दया करोगे तो वह
> याद करेगा...
> क्योंकि दया का उल्टा याद होता है।
> भरी जेब
> ने 'दुनिया' की पहचान करवाई
> और खाली जेब
> ने 'इन्सानों' की.
> जब लगे पैसा कमाने, तो समझ
> आया।
> शौक तो मां-बाप के पैसों से पूरे होते थे,
> अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पूरी होती हैं।
>
> माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
> यहाँ आदमी आदमी से जलता है..
>
> दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट यह
> ढूँढ रहे है
> कि
> मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं?
>
> पर आदमी यह
> नहीं ढूँढ रहा कि
> जीवन में मंगल है या नही..!!
> ज़िन्दगी में न
> ज़ाने कौन सी बात "आख़री" होगी,
> न
> ज़ाने कौन सी रात "आख़री" होगी..
> मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
> न
> जाने कौन सी "मुलाक़ात" आख़री होगी..
>
> अगर जिंदगी मे कुछ पाना हो तो तरीके बदलो,
> इरादे नही.. ग़ालिब ने खूब
> कहा है..:
>
> ऐ चाँद तू किस मज़हब का है ?
> ईद भी तेरी और करवा चौथ भी तेरा..
> तो भरकर बाहर आती है...
> जीवन का भी यही गणित है,
> जो झुकता है वह प्राप्त करता है...
>
> जीवन में किसीका भला करोगे तो लाभ होगा...
> क्योंकि भला का उल्टा लाभ
> होता है।
>
> और जीवन में किसी पर दया करोगे तो वह
> याद करेगा...
> क्योंकि दया का उल्टा याद होता है।
> भरी जेब
> ने 'दुनिया' की पहचान करवाई
> और खाली जेब
> ने 'इन्सानों' की.
> जब लगे पैसा कमाने, तो समझ
> आया।
> शौक तो मां-बाप के पैसों से पूरे होते थे,
> अपने पैसों से तो सिर्फ जरूरतें पूरी होती हैं।
>
> माचिस की ज़रूरत यहाँ नहीं पड़ती,
> यहाँ आदमी आदमी से जलता है..
>
> दुनिया के बड़े से बड़े साइंटिस्ट यह
> ढूँढ रहे है
> कि
> मंगल ग्रह पर जीवन है या नहीं?
>
> पर आदमी यह
> नहीं ढूँढ रहा कि
> जीवन में मंगल है या नही..!!
> ज़िन्दगी में न
> ज़ाने कौन सी बात "आख़री" होगी,
> न
> ज़ाने कौन सी रात "आख़री" होगी..
> मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
> न
> जाने कौन सी "मुलाक़ात" आख़री होगी..
>
> अगर जिंदगी मे कुछ पाना हो तो तरीके बदलो,
> इरादे नही.. ग़ालिब ने खूब
> कहा है..:
>
> ऐ चाँद तू किस मज़हब का है ?
> ईद भी तेरी और करवा चौथ भी तेरा..