: बुलंदी की उडान पर हो तो , जरा सब्र रखो। परिंदे बताते हैं कि , आसमान में ठिकाने नही होते ।। : चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार , लेकिन बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर गया।। : कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन दिल की , जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और .... ख़ुश भी रहूँ ।। : छत टपकती है उसके कच्चे घर की , वो किसान फिर भी बारिश की दुआ माँगता है ।। : तेरे डिब्बे की वो दो रोटिया कही भी बिकती नहीं , माँ ........... होटल के खाने से आज भी भूख मिटती नहीं ।। : इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर " ऐ बेखबर " शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हे....।। : सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने का हुनर , सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है ।। : लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी , पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया ।। : " मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए , वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुये ।।
Dr. Vijay Pithadia, FIETE, PhD, MBA Director, PhD Guided: 5, Author of 6 Books, Google Scholar Citations - 585, h-index - 8, M: +91 9898422655 UGC/Scopus/Web of Science Publication: 30, Referred/Peer Reviewed Publication: 63, Chapters Published In Books: 12, Full Papers Published in Conference Proceedings: 21, Patent Published: 3, Invited Lectures and Chairmanship etc.: 41, Conference Organized: 4, AICTE faculty ID: 1-24647366683