Invitation to participate at 7th Edition
Conference on Automotive R&D Trends
Theme: Towards Strengthening Indian Automotive R&D
13th March 2015: 0900 Hrs; Hotel Hilton, Chennai
I take pleasure in informing about the 7th Edition - Conference on Automotive R&D Trends, the annual flagship event of the Tamil Nadu Technology Development & Promotion Center of CII which is scheduled on 13th March 2015 at Hotel Hilton, Chennai with the theme “Towards Strengthening Indian Automotive R&D”. The conference aims to help stakeholders understand the current scenario of automotive R&D, challenges ahead and share their expectations. The conference attempts to project the future of the Automotive R&D in comparison with Global Level and the bring in stakeholders views for matching this growth with the global standards.
The key objectives of the conference are to: Serve as a platform for stakeholders from the automotive and allied industrial sectors to share their exert views on strengthening the base for automotive R&D; Develop a systematic approach to address the key gaps in the R&D domain; Understand the domestic and global R&D phase to plan for future developments ; Highlight priority areas for developing robust systems and solutions through research and innovation; Catalyze the automotive growth through innovation and technology; Aid the Government Agencies in development of effective R&D policy; Aid Indian industries in interactions with international networks for best practices, collaborative R&D, product development etc; Facilitate knowledge flow by working with international organizations through bi-lateral / multilateral cooperation mechanism;
Create awareness among the end-users and consumers.
The proposed sessions for the conference is as follows:
· Session 1: Automotive R&D Mega Trends – Global Perspective & Indian Standpoint
Advanced technology & concepts in Global Market – Smart / Driverless Cars, Connectivity, Micro-mobility, Alternate fuels etc; Indian Industry – Potential & Challenges; Key R&D Milestones;
· Session 2: Major Challenges in Indian Automotive R&D
Automotive R&D Policies - Indian Perspective; R&D Skill Gaps & Development Measures; Critical Resources in India – Styling, Prototyping & Evaluation; Focus on Special Areas for Product Development, Design & Styling; R&D Investments, Barriers, ROI & Efficient Business Models; Indian Automotive - IPR Perspective; Gen Y & Rapid Urbanization - Shortening Product Life Cycle etc
· Session 3: Efficient Conventions & Approaches towards a Robust R&D
Advantages of setting up R&D in India; Lean Design in R&D; India Unique Designs done in India; Capturing Indian Customer needs by R&D utilizing Quality Function Deployment Approach; Moving from Make in India towards Make for India by R&D
· Session 4: Ecosystem of Automotive R&D – Stakeholder Views & Measures
Landscape view of Indian Automotive R&D; Stakeholder Views of Indian Automotive R&D – OEM Expectations, OES, and Engineering Service Providers Solutions; Success Story of Global OEM / OES R&D in India
· Panel Discussion – “Critical Measures to Enhance Indian Automotive R&D to pace with Global Automotive Trends - OEM , OES & other Partners in R&D Supply Chain”
Speakers addressing / invited to address in the conference include: Mr Arun Malhotra, Managing Director, Nissan Motors; Mr.Madhukar Dev, Managing Director, Tata Elxsi Ltd; Mr Ambuj Sharma, IAS Additional Secretary, Department of Heavy Industries, Government of India; Mr. S. S. Gopalarathnam, Managing Director, Cholamandalam MS General Insurance Company Ltd; Dr. P. A. Lakshmi Narayanan, Chief Technology Officer, Simpson & Co. Limited; Mr Prashant K Banerjee, Head – Homologation & Product Evaluation, ERC, Tata Motors Ltd; Mrs Sujata Egbert, Technology Manager, Tata Elxsi; Dr Vineet Dravid,Managing Director, COMSOL Multiphysics India Pvt. Ltd; Mr Ashok Verghese, Director, Hindustan University;Mr Amol Kulkarni, Project Director, UL India; Mr Debashis Mukherjee, Director, Harman International (India) Pvt Ltd; Mr. Rafiq Somani, Country Manager - INDIA, ASEAN & ANZ, ANSYS Software in addition to speakers from Altran India, New Holland Fiat, Altair India, Mahindra & Mahindra, Tech Mahindra etc.
This conference is an ideal platform where industries and organizations can engage to explore opportunities for joint technology development, identify new business & technology areas, facilitate technology transfer, transfer commercially available off-the-shelf scalable technologies, actively collaborate with Institutes & Research labs for researches, cater knowledge exchange through Industry / Institute Exchange programs etc.
More than 250 senior management personnel from diverse industries all over India and abroad are expected to attend this conference.
I am writing to invite you to participate and also nominate senior colleagues from your organization to attend this important conference. Please confirm your participation / nominations by completing the enclosed conference registration form and sending it to us by fax/email at the earliest.
The participation is limited. We would accept the nominations on first-come-first served basis.
I look forward to your kind participation.
With regards,
Vikram Kirloskar
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This message comes to you from the desk of:
Vikram S Kirloskar
Conference Chairman &
Vice Chairman
Toyota Kirloskar Motor Private Limited
Tamil Nadu Technology Development & Promotion Center
Confederation of Indian Industry
98/1, Velacherry Main Road
Chennai - 600 032, INDIA
Ph : +91-44 42 444 530
हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ।
-( श्री गुरु ग्रंथ साहिब)
Translation: The Lord is my capital; my mind is the merchant.
वक्ता: हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ।
बहुत सुन्दर पद है, समझेंगे। तीन हिस्से कर लीजिये।
१. हरि रासि मेरी
२. मनु वणजारा
३. सतिगुर ते रासि जाणी
तीन ही हैं, और तीन ही सदा हैं। संसार, सत्य और सम्बन्ध। संसार, सत्य और उनके बीच का सम्बन्ध या सीढ़ी। तीन ही हैं। तीन का ये जो आंकड़ा है, ये बहुत महत्वपूर्ण है। संसार, सत्य और सीढ़ी।
हरि रासि- सत्य।
मनु वणजारा- संसार।
सतिगुर ते रासि जाणी- सीढ़ी।
हरि सत्य है, मन संसार है, और गुरु वो सम्बन्ध है, वो सीढ़ी है, जो संसार और सत्य को एक कर देता है, जोड़ देता है।
प्रश्न है कि मन को वणजारा क्यों कहा?
दो कारण हैं, जिसने दोनों कारण समझ लिये वो मन की प्रकृति को बिल्कुल जान गया।
हरि रासि, ‘रासि’ माने धन। मन बंजारा है। बंजारे से दो आशय हैं। पहला- जो भटक रहा है। दूसरा- जो व्यापार कर रहा है। मन इन दो के अलावा कुछ करता ही नहीं। वो किसी राशि को तलाश रहा है। हरि वो राशि है, उसी की तलाश में वो दर-ब-दर भटक रहा है।
भटकाव तो है, तलाश तो है, बेचैनी तो है, पर मन जानता नहीं है कि उसे पाए कैसे। मन की सीमा ये है कि वो सिर्फ संसार को देख सकता है। जिस आयाम को वो देख सकता है, वो संसार का, द्वैत का आयाम है। वहाँ उसे वो मिलता नहीं जिसकी उसे तलाश है। अभी कह रहे थे न कबीर कि, जो जल का प्यासा है, वो सपने में भी जल की तलाश कर रहा है। अब सपने में उसे पानी मिलेगा नहीं। वो भटक रहा है सपने में, और यह होगा कि अगर आप प्यासे सोए हैं, तो आपको प्यास के ही सपने आएंगे, और आप पाएंगे कि आप इधर-उधर पानी की तलाश कर रहे हैं। दिक्कत ये है कि सपने में पानी की तलाश तो निरर्थक है ही, पानी का मिल जाना भी उतना ही निरर्थक है। तलाश तो सपना टूटने पर ही बुझेगी, प्यास का तभी अंत होगा।
मन भटक रहा है, और मन व्यापारी प्रकृति का है। वो ये सोचता है कि जो मिलता है, वो लेन-देन से मिलता है। बंजारे यही करते हैं, अदला-बदली, लेन-देन। लेन-देन से आशय यह है कि मैं हमेशा बना रहूं। कुछ दूंगा, तो बदले में कुछ लूंगा भी, ताकि मेरा होना घटे न। और संसार का यही क़ायदा भी है, यहां जो है, वो सिर्फ़ व्यापार है।
कोई ऐसा सम्बन्ध नहीं है इस संसार में जिसमें व्यापार न हो। आप देना बंद कर दें, आपका एक-एक सम्बन्ध टूट जाएगा। प्रयोग कर के देख लें। आपका घनिष्ठ से घनिष्ठ, मधुर से मधुर, प्यारे से प्यारा सम्बन्ध, दो दिन न चल पाएगा अगर आप देना बंद कर दें। संसार का हर रिश्ता, पारस्परिक भोग का रिश्ता है। तुम मुझे भोगो, मैं तुम्हें भोगूंगा। एक ओर से अगर भोग की धारा टूटी, तो वो रिश्ता पूरा ही टूट जाएगा।
मन बंजारा, सोचता है कि भटक-भटक कर, और इधर-उधर लेने-देने का काम कर के, अपनी सत्ता को कायम रख कर के, वो पा जाएगा, नहीं पा पाता। संसारी को सत्य की तलाश तो है, पर उसके तरीके बड़े अनुचित हैं, क्योंकि वो होश में नहीं है। वो सपने में पानी की तलाश कर रहा है, वो गलत आयाम में ढूंढ रहा है। जो जहां खोया है, उसे वहां खोजने की जगह, वो किसी और ही जगह खोज रहा है। वहां उसे कभी मिलेगा नहीं, जितना खोजेगा उतना थकेगा, प्यास उसकी और बढ़ेगी ही। ये खोजने का बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण पहलू है। जितना खोजते हो, उतना दूर होते जाते हो।
कबीर कहते हैं, ‘जब तक खोजत चला जावै, तब तक हाथ ना मुद्दा आवै’। जितना खोजा, उतने दूर हो गये। ‘दौड़त-दौड़त दौड़िया, जेती मन की ठौर’। जितना खोजा, उतना खोया। जो खोजेगा, वो खोएगा। जो ठहर जाएगा, वो कहेगा, ‘पाया ही हुआ है’। जो खोजेगा, वो खोएगा। जो ठहरेगा, वो पाएगा। मन बंजारा है, वो खोजने के अलावा, भटकने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं।
‘हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी’।
याद रखना, राशि तुम्हारी ही है। गुरु एक मामले में बिल्कुल अप्रासंगिक है, कि वो तुम्हें कुछ देता नहीं। कोई अगर ये कहे कि मेरे सत-गुरु ने मुझे कुछ दे दिया है, तो या तो वो समझा नहीं है, या फिर भाषा की चूक है। गुरु तुम्हें कुछ देता नहीं है, वो सिर्फ़ इशारा करता है कि गलत जगह खोज रहे हो। जिस राशि की, जिस संपदा की तलाश है, वो वहां नहीं है जहां तुम्हारा सारा विस्तार, सारा फैलाव, सारे संबंध, सारी खोज हैं। उसे कहीं और खोजो, और गुरु का इसके अलावा कोई काम नहीं।
तुम्हारी चीज़ है, सदा से तुम्हारे पास थी, कभी खोई भी नहीं थी। गुरु क्या करेगा? अप्रासंगिक है, उसका कोई प्रयोजन ही नहीं है। वो तो हल्का-सा इशारा मात्र है। है तो वो कुछ भी नहीं, बस सूक्ष्मतम इशारा देता है कि पलट, कि तेरे ही पास है, पलट। लेकिन याद रखना कि ये हल्का-सा इशारा भी न मिले, तो खोज और भटकाव युगों-युगों तक चलेगा। कुछ करता नहीं है गुरु, बस संकेत देता है, पर वो संकेत न मिले तो शायद अनंतता तक भटकते ही रह जाओगे।
हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ।
हरि के अलावा और कोई राशि है नहीं। मन के साथ बड़ा दुर्भाग्य ये है कि वो ‘हरि राशि’ की तो तलाश तो कर रहा है, पर अपने आप को हरि से भी बड़ी राशि समझता है। बंजारे हो, व्यापार करना चाहते हो, आओ करते हैं व्यापार। व्यापार में यही तो किया जाता है न, कि कम दो, ज़्यादा लो, तभी अच्छे व्यापारी हो? अगर तुम जानते होते कि हरि राशि तुमसे कहीं बड़ी राशि है, तो तुम कब का अपने ‘आप’ को दे कर, हरि को ले चुके होते। पर नहीं, तुम ध्यान से देखो, तुम्हारे मन में धारणा यही है कि हरि बड़े होंगे, पर मैं हरि से बड़ा हूँ, नहीं तो तुम ये सौदा कब का कर चुके होते।
तुम ये सौदा क्यों नहीं कर रहे हो? तुम क्यों नहीं अपने आप को समर्पित कर देते, और बदले में सब कुछ हासिल कर लेते? समर्पण का अर्थ ये नहीं है कि कुछ खो दिया, समर्पण का अर्थ यही है कि जो बोझ था वो हटा दिया, और अपना हल्कापन पुनः हासिल कर लिया। याद रखना, ‘पुनः हासिल’, हासिल नहीं। तुम्हारा ही था हल्कापन, तुमने ही बोझ पकड़ रखे थे, पर तुम उन बोझों को, बड़ी राशि जानते हो, हरि से ज़्यादा बड़ी राशि, कि जैसे कोई अपने सिर के फोड़े को, ब्रेन ट्यूमर को, अपनी होशियारी का केंद्र मान ले। वो कहे कि ये जो सिर के भीतर बीमारी है, इसी के कारण तो मेरी होशियारी है। अब उसका इलाज कैसे होगा? तुम भजन गा रहे थे। वो यही गाएगा, सिर के भीतर जो मेरी बिमारी है, यही तो मेरी होशियारी है’, और कहेगा, ‘भजन में होत आनंद-आनंद’, यही उसका आनंद बन जाएगा। अब भटकेगा!
सिर का फोड़ा तो फिर भी छोटी बात है। इलाज नहीं कराओगे तो थोड़ी देर में फटेगा, मर जाओगे, शरीर से मुक्ति मिल जाएगी, पर जो ये मन का घाव होता है, इसका कोई इलाज ही नहीं होता, भटकते ही रहते हो। एक योनी, दूसरी योनी, चौरासी लाख यूं ही नहीं कही गई हैं। भटकते रहो!
गुरु बंजारे से कहता है, ‘ठीक है की तू बंजारा, समझा की तू बंजारा, ठीक है की तू प्यासा, समझा की तू प्यासा। पर प्यासा है तो प्यास मिटानी है कि नहीं, या ऐसे ही तड़प-तड़प कर ख़त्म होना है? ठीक, तू व्यापारी। तो नफ़े का सौदा करना है कि नहीं? सच्चा सौदा करना है कि नहीं’?
गुरु को व्यापारी से, व्यापार की ही भाषा में बात करनी होती है। वो गुरु, गुरु नहीं, जो व्यापारी से, व्यापार के अलावा किसी और भाषा में बात करे। व्यापारी को तो यही समझ में आता है- पाना और खोना, लालच और भय। गुरु को आना चाहिए व्यापार की भाषा में बात करना, गुरु को इसमें पारंगत होना चाहिये, नहीं तो मन कभी उसके हाथ नहीं आएगा। बड़ी दुखद स्थिति हो जाएगी। तुम्हें दिख रहा होगा कि तुम भला करना चाहते हो, पर कर नहीं पाओगे। क्योंकि तुम उससे एक ऐसी भाषा में बात कर रहे हो, जो उसके लिये पराई है।
सत्य की भाषा, संसारी मन नहीं समझेगा। व्यापारी मन, संन्यास की भाषा नहीं समझेगा। भटकते बंजारे को तुम्हें यही कहना पड़ेगा कि उधर को चल, वहां बड़ा फायदा है। तुम उसे यह नहीं कह पाओगे कि वहां को चल, वहां तुझे मिट जाना है। संसारी तुम्हारी गर्दन पकड़ लेगा यह सुनते ही। मिट जाना है? मैं तुम्हें मिटाए देता हूं, इससे पहले कि तुम मुझे मिटाओ। थोड़ा धक्का देना पड़ेगा, थोड़ा आकर्षित करना पड़ेगा, और फिर धक्का देने की आवश्यकता शनैः शनैः कम होती जाएगी।
सत्य जितना प्रकाशित होता है, उतना किसी और दीये की ज़रुरत कम होती जाती है।
कुछ अर्थों में, गुरु शमा की तरह होता है, मोमबत्ती की तरह, या दीये की तरह। सुबह लेकर आता है, और सुबह होते ही खुद मिट जाता है। कोई कीमत नहीं है गुरु की, हरि के सामने गुरु क्या है? दीये बराबर। हरि अगर सूरज है, तो गुरु दीया है। पर उस दीये की बड़ी कीमत है। सुबह वही लेकर आया है। हाँ, सुबह होते ही मिट गया। पर न होता वो, तो सुबह आती नहीं। तुम सोते रह जाते।
सुबह का क्या अर्थ है? जब तुम जगे।
- ‘बोध-सत्र’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।