20121203

जिंदगी जिने का मजा तभी आता है जब मौत बिन बुलाये आये


 पेड से गिरता पत्ता एक दर्द छोड जाता है बिछडने का. हर ढलती शाम एक एहसास छोड जाती है तनहाई का. कभी कभी जिवन में खुछ एसी घटना ये घटती है जो मौत को काफी करीब से रूबरू कराती है. मौत को करीब से देखने के बाद आप जिंदगी की अहमियत समजने लगते है. आप जान जाते है की आप की जिंदगी कितनी किंमती है और मोत एक वास्तवीकता. महान फिलोसोफर ऍरिस्टोक्राफ्ट कहते थे 'जिंदगी जिने का मजा तभी आता है जब मौत बिन बुलाये आये.' पर वो अहेसास काफी डरावना होता है वही चेतना जाग्रूत करने वाला.मौत आपको अहेसास दिलाती है कितना कम समय बचा है आपके पास ? उसके बाद आप अपने परिवार को ज्यादा चाहने लगते हो अपने आप को ज्यादा चाहने लगते हो. अहम का नशा ऊतर जाता है आप दुश्मनो को भी समजने लगते हो.
     फांसी के फंदे की तरफ आगे बढ रहे या मोत की दरवान के तरफ कदम बढा रहे हर ईन्शान के कदम रूक जाते है एक पल के लिये. आखरी बार जब वो पिछे मुड कर देखता है तो हर पहेलु हर बिता कल उजागर होता है.एक पल के लिये आंखे बंध होती है और जिव आत्मा अपने आपसे ही सवाल कर बेठता है 'मेरा परिवार ये दुनिया ये जमाना याद रखेगा मुजको ?. क्या आने वाली पीढी जान पायेगी की में कौन था ? किस अदब से जिंदगी जिता था ? किस जुनुन से मुह्हाबत करता था ? शायद नहीं..' बंध आंख से ही आंसु की धारा बहेती है. सांसे फुल जाती है पर दिमाग एक अजब स्वस्थता प्राप्त करता है डट कर सामना करने का. शरीर में कंपन ऊठती है पर आंखो में द्रढ विश्वास खुल्ली आंखो से हकीकत देखने का. न ह्सी न शोक भावहीन चहेरे से जिव आत्मा को ईंतजार होता है तो बस उस आखरी पल का ऊस आखरी घडी का जब आंखे हंमेशा के लीये बंध हो जायेगी और रहे जायेगा तो एक गाढ संन्नाटा...
     बचपन में में अपने मोटीबा-बापुजी के साथ गांव में रहेता था.छोटी सी ऊम्र में मुजे एक बात का डर हंमेशा सताता था मोटीबा-बापुजी से बिछडने का. ऊनकी म्रूत्यु के विचार मात्र से में डर जाता था अस्वस्थ हो जाता और मन ही मन बोल पडता 'बा बापुजी के बगेर में एक दिन भी जिंदा नही रह पाऊंगा. ऊनको मे कभी नहीं भुल पाऊंगा..', पर एसा हुआ नहीं.समय ईन्शान को बदल देता है या युं कहे समय ईन्शान को जिना शिखा देती है. में न केवल ऊनके बगेर जीया समय चलते ऊनको भुल भी गया. बस हिटलर द्वारा लिखीत किताब 'वेईटेस बच' की कुछ लाईन याद आ रही है.. "न तो में नादान हुं न पागल जो सत्तर लाख लोगो के सैन्य से दुनिया जीतने चला हुं.ऍसा  नही की में नहीं जानता मेरा अंजाम क्या होगा... पर साथ में में यह भी जानता हुं की ये जंग दुनिया जितने के लीये नहीं मौत के बाद अपने आप को जिंदा रखने के लीये है." 
                                                                                                                                             - Pranav