20141119

गीले काग़ज़

गीले काग़ज़ की तरह है ज़िंदगी अपनी,

कोई लिखता भी नहीं और कोई जलाता भी नहीं,

इस क़दर अकले हो गये हैं आज काल,


कोई सताता भी नहीं और कोई मनाता भी नहीं !!