20130401

"इन्सान चलता फिरता कब्रस्तान "


अहिंसा : नाम से सिर्फ इतना ही कह सकते है के मन वचन और करम से किसी को भी दुःख नहीं देना। ये एक मात्र कहनी है , पर हम अपने स्वाद के लिए जीवित पशुओ को मारते है, उनके मांस को खाते है। कौनसे धरम में कहा गया है के मांस खाना जरुरी है।
इश्वर ने इस दुनिया में हमें सब वह चीज मौजूद दी है, जिससे इन्सान जिन्दा रह सके वो भी एक बेहतर स्वस्थ्य के साथ। कभी सोचा है के अपने स्वार्थ के लिए हम रोज कितने जीवो की हत्या करते है। जिस इन्सान और इस कायनात को उस मालिक ने बनाया है तो हमें क्या हक़ बनता है के किसी बी जिव को ख़तम करने का? महज़ अपनी स्वाद के लिए? कभी भी कब्रस्तान पे जा कर देखो वहा मुर्दे पड़े होते है , या हम किसी भी मुर्दे को अपने घर या समाज में नहीं रख सकते है तो फिर उस जिव को मार कर अपने पेट में दफ़न कर रहे है .........क्यों? फिर जवाब है के स्वाद!!
ये स्वाद हमें हर शाकाहारी भोजन मिलता है, फिर बी जिव हत्या क्यों इन्सान करता है? वैसे भी हमारे आरोग्य और विचार शक्ति पे हमारे भोजन का बहोत गहरा प्रभाव पड़ता है। अगर ज्यादा अध्यात्म में जाए तो इन्सान अध्यात्म जीवन को जीने के लिए सबसे पहली सोच यही होनी चाहिए के जीव पे करुणा और दया,......चाहे कोई भी जिव क्यों न हो। पर फ़िलहाल हम ये सोच कर देखे के आम जीवन में हमारे आरोग्य और विचारो पे क्या प्रभाव पड़ता है। हमारे स्वाभाव में परिवर्तन आता है, तामसिक प्रकृति होती जाती है इन्सान मे।
उसे सही गलत का पता नहीं चलता है। कभी कतल खाने की मुलाकात लेनी चाहिए तो पता चलता है के वो बकरी, मुर्गी या कोई ओर जीव किस तरह से चिल्लाता है...... कितना दर्द महसूस होता है उसे..... कतल होने से पहले उसको भूखा रखा जाता है ताकि उसकी चमड़ी को शरीर से अलग करने में आसानी हो। एक बार हम खुद को उस जिव की जगह रख कर देखे तो हमे महसूस होगा की कोई जान लेता है तो क्या हाल होता है ? महज़ सिर्फ एक इंजेक्शन से अगर हमें दर्द होता है तो हम तो उस जिव को अपने अन्धविश्वास और बोगस विचारो को बढ़ने के लिए ये खा रहे है। किसी बी धरम या संत यह कभी नहीं कहते है के मांसाहार करो।
ये कैसा इन्सान का स्वार्थ है जो किसी को मारने  के बाद उसे अपनी तृप्ति के लिए खाओ। फिर हम इन्सान नहीं कहला सकते है। इन्सान तो मालिक की बनायीं हुई वो रचना है जो दया और प्रेम की जिन्दा उक्ति है। सिर्फ आधुनिक बन्ने के लिए , दिखावो के लिए, सुनी सुंनाइ बातो के लिए ये बिलकुल गलत है के किसी मालिक की बनाए हुई जिव आत्मा को मारो।
अगर ये सही है तो इन्सान एक चलता फिरता कब्रस्तान है? ये एक सच है जिसे आज इन्सान को समजना चाहिए के क्यों आज विदेश के लोग भारत को अपनी शरण बना रहे है???? क्युकी उन्हें शांति नहीं है ,
मानसिक तौर पे वो बहोत गरीब है, संसकारो की कमी है वहा!!!!! क्यों हिदुस्तान का उदहारण पुरे विश्व में दिया जाता है ? क्युकी भारत में ये सब की समज है, भारत के लोग विश्व के देशो से एक कदम ऊँचे है अपने विचारो से। अभी भी समय है के ये सोचे के जीवन को हम कैसे दिशा दे ? किसी को दया देंगे, प्रेम देंगे तो वो ही हमें वापिस मिलेगा हमेशा.....
नहीं तो जीवन में किये कर्मो का भुगतान हमें भी यही भुगतान देना है। आज के ज़माने में कितनी बिमारिय है ----एड्स, T.B ,कैंसर,फ्लू वगेरह ......... क्या मतलब है इन बीमारियों का? कभी हमने समजने की कोशिश की है? जो इन्सान अगर किसी को दया नहीं देगा तो मालिक क्या दया दिखेगा उस इन्सान पर? एक बार सोचना जरुर सोचना ....... और गौर करना के हम क्या कर रहे है और किसी को क्या दे रहे है????